साख की धूप ------------------------
आज दिनांक ३०.४.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
्वैसाख की धूप :-
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गज़ब धूप जलती दोपहरी,इस मौसम मे शूल हो गये,
कभी सुहानी लगती थी वह हवा के मौसम हवा हो गये।
सुबह सात लूं हैं चल देतीं,कूलर-पंखे है नाकाम,
रात को बिजली तड़पा देती,नहिं मिलता तन को आराम।
ऐ सी भी मानो लगवा लें,बिजली खर्चे बहुत हो गये,
ग़ज़ब धूप तपती दोपहरी,इस मौसम मे शूल हो गये।
तलहटी मे हिमगिरि के बसता,उत्तर प्रदेश हमारा है,
मिलती हैं सारी सुविधाएं,प्यारा प्रदेश हमारा है।
गर्मी भीषण,जाड़े अतिशय तापमान भी शून्य हो गये
ग़ज़ब धूप,जलती दोपहरी,इस मौसम में शूल हो गये।
चिड़ियां चूं चूं करती रहतीं,दिन भर पानी पीती हैं,
चावल दाने पड़े रह गये, चिड़ियां उन्हें न छूती हैं।
इस बरस गर्मी के रुख़ से होश-,हवास भी गुल हो गये,
गज़ब धूप तपती दोपहरी,इस मौसम में शूल हो गये।
पेड़ की छाया थी सुखदायी पर लुऐं कहां रुकने देतीं,
गर्म थपेड़े लगें लुओं के, सांस नहीं लेने देतीं।
शिकंजवी अब नहीं मयस्सर,नींबू दादा मोल हो गये,
गज़ब धूप जलती दोपहरी,इस मौसम मे शूल हो गये।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Babita patel
01-May-2024 07:14 AM
Amazing
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